मुंसीपाल्टीः जनता पर ठोक रहे “जुर्माना”, रसूखदारों को खिला रहे सोने का “दाना”

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आम आदमी करे काम काज, रसूखदार कर रहे राज

जी हां, आपने सच सुना। हमारी ग्वालियर की मुंसीपाल्टी कुछ ऐसा ही कर रही है। निरीह, बे-जोड़ यानी कि जिसका किसी रसूखदार से जुड़ाव नहीं है, मुंसीपाल्टी के अफसरान नल-जल, संपत्तिकर की थोड़ी सी रकम बकाया होने पर ही उस पर जुर्माना ठोकने, जुलूस निकालने के लिए दरवाजे पर ढोल बजवा देती है। दूसरी ओर रसूखदारों की खातिरदारी करती है और रसमलाई खिलाती है। ऐसा ही एक मामला होर्डिंग्स से जुड़ा है।

किस्सा कुछ यूं है- शहर का प्रतिष्ठ शैक्षणिक संस्थान है, प्रेस्टीज इंस्टीट्यूट और मैनेजमेंट एंड रिसर्च। इस पर दो साल से नगर निगम का 18 लाख रुपए बकाया है। निगम के नियमों के तहत ही दो साल का ब्याज जोड़ दें तो रकम करीब 25 लाख तक पहुंचती है। लेकिन निगम के अधिकारी इस रकम को वसूलने के बजाय माफ करना की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल, इस कॉलेज ने निगम से परमिशन लिये बगैर पड़ाव स्थित पोस्ट ऑफिस से गोला का मंदिर चौराहा तक डिवाइडर के बीच लगे 126 बिजली के खंबों पर कियोस्क लगाकर अपने कॉलेज का प्रचार किया था। यह प्रचार 16 जून से 15 जुलाई 2022 तक यानी 30 दिन किया गया। अधिकारियों ने इसे पकड़ा और नियमों के तहत 18 लाख 14 हजार रुपए जुर्माना ठोक दिया। राशि जमा न करने पर हर साल 12 फीसदी ब्याज वसूलने का नोटिस दे दिया। इस मामले में नया मोड़ तब आया जब कॉलेज प्रबंधन ने लिखकर दिया कि उसने तो होर्डिंग्स लगाने का ठेका एसेन्ट ब्रांड कम्यूनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड इंदौर नामक फर्म को दिया है। जबाव में अधिकारियों ने लिखकर दे दिया कि इस फर्म का टेंडर तो मई 2021 में ही खत्म हो चुका है। अब निगम के भ्रष्ट अफसरों मजेदार बात यह देखिये कि फर्म का टेंडर मई 2021 में खत्म हो गया और अवैध होर्डिंग्स का खेल एक साल बाद यानी जून 2022 में पकड़ा गया। वह भी केवल एक माह के लिये अवैध बताया। एसेन्ट ब्रांड नामक फर्म को साफ बचा दिया गया, खामियाजा अब कॉलेज प्रबंधन को भुगतना पड़ रहा है और भुगतना पड़ेगा ही क्योंकि गर्दन को उसी की फंसी है। अफसर अभी भी उसे बचा रहे हैं और दो साल से पैसा ही वसूल नहीं किया है। अब 18 लाख के 25 लाख हो चुके हैं। इतनी रकम यदि किसी गरीब के जलकर या संपत्तिकर की माफ कर देते तो वह और उसका परिवार दो जन्म तक मुंसीपाल्टी के अफसरों को भगवान के रूप में याद जरूर करता रहता। खैर, रामचरित मानस में तुलसीदास पहले ही लिखकर रख गए हैं कि ‘समरथ को नहिं दोष गोसाईं’। फिर भैया हम तो केवल आपको बता ही सकते हैं, करना न करना रसूखदारों-जिम्मेदारों के हाथ है, धन्यवाद

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