मुकदमा लंबित होने के आधार पर आरटीआई में सूचना न देना गलत: हाईकोर्ट

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सिटी रिपोर्टर।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा लंबित है और वह जांच को प्रभावित कर सकता है। आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना देने से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि आपको यह स्पष्ट करना होगा कि जांच पूरी होने के बाद वह जांच कैसे प्रभावित कर सकता है। अदालत ने एक मामले में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले को गलत ठहराते हुए याचिका पर पुन: विचार करने का निर्देश दिया है।

सीआईसी ने संबंधित विभाग के उस फैसले को सही ठहराया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक और अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित थी ऐसे में मांगी गई जानकारी उसे नहीं दी जा सकती।न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने इस तर्क को भी गलत ठहराया कि संबंधित व्यक्ति मांगी गई सूचना को अपने बचाव में प्रयोग कर सकता है। अदालत ने कहा कि जब मामला कोर्ट में लंबित हो तो संबंधित व्यक्ति को संबंधित जानकारी मांगने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए पूरी जानकारी मांगने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार से सूचना न देने से बिना कारण सार्वजनिक अथोरिटी पर बोझ बढ़ता है। ये अधिनियम में दिए गए प्रावधानों का उल्लंघन है और सूचना का खुलासा न करना अनुचित है। याची ने विभाग से अपने खिलाफ चले रहे मुकदमे, विभागीय कार्रवाई इत्यादि को 25 प्वाइंटों की जानकारी मांगी थी। इसमें जांच अधिकारी, स्टाफ, गवाहों के अलावा अन्य प्रकार की जानकारी मांगी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि याची के तर्क को बिना उचित विचार के रद्द नहीं किया जा सकता। ऐसे में सीआईसी को अपने 15 जनवरी 2018 के आदेश पर पुन: विचार करना चाहिए। पेश मामले के अनुसार याची अमित कुमार श्रीवास्तव के खिलाफ सीबीआई ने मई 2012 को अपने पद का दुरुपयोग व भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। उसे गिरफ्तारी के बाद जमानत मिली थी।

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