Gwalior: गुटबाजी, सुबह से रात तक आयोजन, नरेन्द्र सिंह तोमर को नहीं मिला बोलने का मौका

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भाजपा की गुटबाजी में फंसे सिंधिया और तोमर समर्थकों के कार्यकर्ता

हरीश चन्द्रा, ग्वालियर

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का ग्वालियर दौरा हो गया। कुछ इतिहास भी बने और कुछ नई ऊर्जा का संचार भी हुआ। यह दौरा राजनीतिक गलियारे में भाजपा की गुटबाजी की चर्चा फिर छेड़ गया। उपराष्ट्रपति दो कार्यक्रमों महाराज बाड़े पर जियो साइंस म्यूजियम और फिर जीवाजी यूनिवर्सिटी में जीवाजीराव सिंधिया की प्रतिमा के अनावरण के बाद अटल सभागार में उनका संबोधन हुआ। दोनों ही कार्यक्रमों में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर भी शामिल हुए।

जेयू के कार्यक्रम में सिंधिया को बोलने के मौका मिला, नरेन्द्र सिंह तोमर को नहीं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी दोनों कार्यक्रमों के अलावा ग्वालियर किले पर समवेद प्रस्तुति और फिर तानसेन समारोह का उद्घाटन करने पहुंचे। यहां भी नरेन्द्र सिंह तोमर को बोलने का मौका नहीं मिला। यानी सुबह से रात तक जियो साइंस म्यूजियम, जीवाजीराव सिंधिया की प्रतिमा का अनावरण, अटल सभागार में संबोधन, एलएनआईपीई में कार्यक्रम, किले पर वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति और फिर तानसेन समारोह का उद्घाटन, इन कार्यक्रमों में नरेन्द्र सिंह तोमर की मौन मौजूदगी चर्चा का विषय रही। चर्चा इसलिए ज्यादा रही क्योंकि जीवाजी यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम से तो तोमर गुट के ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह को दूर रखा गया। जेयू के आमंत्रण पत्र में सांसद का नाम तक शामिल नहीं किया गया और इस कारण वे कार्यक्रम में पहुंचे नहीं। सिंधिया महल यानी जय विलास पैलेस में भी ये सभी बड़े नेता मौजूद रहे और महल में ग्वालियर सांसद को भी जगह नहीं मिली। सांसद कुशवाह ने गुटबाजी के इस प्रसंग पर अपनी प्रतिक्रिया में जेयू के कार्यक्रम को निजी कार्यक्रम बताया जबकि यह सरकारी यूनिवर्सिटी है, उसमें निजी कार्यक्रम नहीं था। इस घटनाक्रम से भाजपा में गुटबाजी को फिर हवा मिली है। चर्चा का एक कारण इसलिए भी रहा कि पिछले दिनों विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में रामनिवास रावत को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में केन्द्रीय मंत्री सिंधिया प्रचार के लिए नहीं पहुंचे थे। इस पर सिंधिया ने कहा था कि उन्हें बुलाया जाता तो जरूर जाते। यह वक्त्य इसलिए चार्चा का विषय रहा क्योंकि रामनिवास रावत कांग्रेस छोड़कर नरेन्द्र सिंह तोमर गुट में शामिल हुए थे। जबकि रावत कांग्रेस में सिंधिया समर्थक थे। यह घटनाक्रम साफ इशारा कर रहे हैं कि भाजपा में गुटबाजी बाहर तक आ चुकी है। यह कितने समय तक रहेगी और किसका पलड़ा भारी करेगी, भविष्य की बात है लेकिन इतना जरूर है कि दोनों के समर्थकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

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