भारत और थाइलैंड के बीच में हमेशा से ही वैचारिक व सांस्कृतिक संतुलन रहा है- डोनाविट पूलसावट

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जेयू: भारतीय परंपरा एवं आधुनिकता विषय पर संगोष्ठी आयोजित

आधुनिकता और पारंपरिकता के साथ ही हम आगे बढ़ रहे हैं- प्रो. अविनाश तिवारी

सिटी रिपोर्टर ग्वालियर।

भारत और थाईलैंड के बीच में हमेशा से ही वैचारिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक संतुलन रहा है।भारत के साथ थाईलैंड का कारोबार हमेशा से ही रहा है।भारत से ही बुद्धिज्म का प्रभाव थाईलैंड में गया है। थाईलैंड एशिया खंड में भारत को सबसे करीब मानते हैं। दोनों देशों के बीच बड़ा करीब संबंध है।यही कारण है कि जब मुझको भारतीय परंपरा एवं आधुनिकता थीम पता चली तो मैं ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में मुख्य अतिथि के रूप में आया। यह बात गुरूवार को थाईलैंड के महावाणिज्य दूत डोनाविट पूलसावट ने जेयू के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला व मुंबई स्थित काश फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भारतीय परंपरा एवं आधुनिकता का संगम विषय पर संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कही।

विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉक्टर स्मिता सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि भारत की भूमि पावन भूमि है। हम मनाते हैं असत्य पर सत्य की जीत का पर्व। हमारी परंपराओं से हम अभी भी परिचित नहीं हैं। कहीं ना कहीं हम बिखर गए हैं पर भूले नहीं है। नई पीढ़ी को दिशा ऐसी संगोष्ठी के माध्यम से दी जा सकती है।अंत में उन्होंने कहा कि हे प्रभु हमको ऐसा वर दो माता-पिता की सेवा हो।मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉक्टर प्रत्युष कुमार मंडल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की आज नई व्यवस्था है, उसकी पुनः संरचना हो रही है। एनसीआरटी ने इसे संभाला है, शोध की आवश्यकता है। पुराने ग्रंथों का अलग-अलग भाषा में ट्रांसलेट होना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जेयू के कुलगुरु प्रोफेसर अविनाश तिवारी ने कहा कि हम आधुनिकता और पारंपरिकता के साथ ही आगे बढ़ रहे हैं। हमारा देश ज्ञान की दृष्टि से हमेशा से ही संमृद्ध रहा है। हमारे वेदों पर आज भी रिसर्च चल रहे हैं जो बात वेदों में कही गई है। वह आज सार्थक सिद्ध हो रही है। आधुनिकता को हम वेस्टर्न चश्मे से देखते हैं, जबकि आधुनिकता पारंपरिकता से ही संबंधित है। हमारी यात्रा पारंपरिकता से आधुनिकता की ओर नहीं है। आधुनिकता एक टूल है। हमें पारंपरिक चीजों को अच्छे से रिसर्च करने और समझने की जरूरत है।

काश फाउंडेशन के संस्थापक डॉक्टर अवकाश जाधव ने कहा कि काश फाउंडेशन शिक्षा पर्यावरण स्वास्थ्य हैरिटेज के क्षेत्र में कार्य करता है।निर्माण और प्रलय एक शिक्षक की गोद में पलता है जब भी शिक्षक खड़ा हुआ है उसने पूरे देश का इतिहास बदल दिया है।काश फाउंडेशन महाराष्ट्र क्षेत्र में कार्य कर रहा है।यूनेस्को से प्रमाण पत्र मिले हैं। संस्था में प्रोफेसर इंजीनियर वकील बहुत बड़ी संख्या में युवा वर्ग जुड़ा है। आगे की पीढ़ी को सशक्त और सक्षम बनाने का कार्य कर रहे हैं।कार्यक्रम के दौरान स्मारिका का विमोचन किया गया। साथ ही जेयू और काश फाउंडेशन के बीच एमओयू साइन किया गया। छह तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, विरासत, पर्यटन, जनजातीय परंपरा, भू राजनीति, भारतीय शिक्षा पद्धति, भारत की वैज्ञानिक परंपरा, सह अस्तित्व, प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं उसमे प्रयुक्त तकनीकी उपकरणों का अनुप्रयोग आदि उपविषयों पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों एवं अनुसंधित्सुओं द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया। सेमिनार में जीवाजी विश्वविद्यालय के साथ-साथ इटली, बोलिविया, इंडोनेशिया, नेपाल आदि के ख्यातिलब्ध विश्वविद्यालय भी सहयोगी की भूमिका में रहे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संगोष्ठी के प्रथम दिवस का समापन हुआ। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में राजा मानसिंह कला एवं संगीत विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो.स्मिता सहस्त्रबुद्धे उपस्थित, मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर एवं डीन एनसीआरटी, नई दिल्ली, डॉक्टर प्रत्युष कुमार मंडल उपस्थित रहे। वहीं अध्यक्षता जेयू के कुलगुरु प्रो. अविनाश तिवारी ने की। प्रो.शांतिदेव सिसोदिया के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम के दौरान सभी अतिथियों को शॉल श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में कुलसचिव अरूण सिंह चौहान, कार्यपरिषद सदस्य डॉ.विवेक सिंह भदौरिया,प्रो.जेएन गौतम,प्रो. एस एन महापत्रा, प्रो हेमंत शर्मा, डॉ. मनोज शर्मा,प्रो. राधा तोमर, डॉ विमलेन्द्र सिंह राठौर सहित शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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